BA Semester-1 Philosophy - Hindi book by - Saral Prshnottar Group - बीए सेमेस्टर-1 दर्शनशास्त्र - सरल प्रश्नोत्तर समूह
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बीए सेमेस्टर-1 दर्शनशास्त्र

सरल प्रश्नोत्तर समूह

प्रकाशक : सरल प्रश्नोत्तर सीरीज प्रकाशित वर्ष : 2022
पृष्ठ :250
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 2633
आईएसबीएन :0

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बीए सेमेस्टर-1 दर्शनशास्त्र

प्रश्न- योग' से आप क्या समझते हैं? योग साधना के विभिन्न सोपानों का संक्षिप्त विवेचन कीजिए।

अथवा
योग दर्शन के अष्टांग मार्ग का संक्षिप्त विवेचन कीजिए।

उत्तर-

योग का अर्थ है समाधि। समाधि कहते हैं सम्यक् प्रकार से भगवान में मिल जाना। यह जीव ईश्वर से तब मिलता है जब वह कामना, वासना, आसक्ति और संस्कारों का परित्याग कर दे। ब्रह्म और जीव के बीच स्वजातीय, विजातीय और स्वगत आदि का विभोजन करके एक हो जाना योग है। हमारी वाणी हमारे कार्य और हमारी सम्पूर्ण सत्ता जब उपर्युक्त दृष्टि से भगवन्मय हो जाते हैं तो उसी अवस्था को जीव-ब्रह्म का योग कहा जाता है।

सामान्यतः शरीर और चित्त की वह क्रिया जिसके करने से कोई विशेष सिद्धि प्राप्त होती है वह योग है। चित्त प्रकृति का पहला विकार है। चित्त अपने स्वाभाविक रूप में जड़ होता है किन्तु पुरुष के सम्पर्क में आने के कारण चेतन जैसा आभासित होता है। वह पुरुष के प्रकाश से ही प्रकाशित होती है। उसमें सत्व, रज और तम गुण होते हैं और गुणों की प्रधानता के कारण ही उसके तीन प्रकार होते हैं। जो क्रमशः हैं - प्रख्याशील, प्रवृत्तिशील तथा स्थितिशील। चित्र की पाँच अवस्थाएँ होती हैं -

(i) क्षिप्त,
(ii) मूढ़,
(iii) विक्षिप्त,
(iv) एकाग्र और
(v) निरुद्ध।

क्षिप्त चित्त रजस् से अविभूत होता है इसलिए अत्यंत चंचल और बहिर्मुख होकर लगातार एक वस्तु से दूसरी वस्तु में जाता रहता है। जिसके फलस्वरूप सुख-दुःख का कारण है। तम की प्रबलता के कारण चित्त विवेक शून्य हो जाता है तब उसको 'मूढ़' कहते हैं। उसमें क्रोध उत्पन्न होता है जिसके परिणामस्वरूप उसकी प्रवृत्ति विरोधी हो जाती है। उसमें एकाग्रता नहीं रहती है। 'विक्षिप्त चित्त' सत्त्व के प्रभाव के कारण अधिकतर चंचल रहते हुए भी कभी-कभी स्थिर हो जाता है और दुःखप्रद वस्तुओं से हटकर सुखप्रद वस्तु में केंद्रित हो जाता है। उसका चांचल्य या तो स्वाभाविक होता है या शारीरिक और मानसिक विक्षेपों के कारण होता है। 'एकाग्रचित्त' शुद्ध सत्त्व के प्रभाव से सभी वस्तुओं से हटकर एक स्थूल या सूक्ष्म वस्तु पर केंद्रित रहता है और उसकी वृत्ति निर्बाध होती है। इस भूमि में चित्त पूर्णतया अन्तर्मुखी हो जाता है निरुद्ध चित्त में शुद्ध सत्व के प्रभाव से सभी वृत्तियों का निरोध हो जाता है और केवल संस्कार ही शेष रहते हैं। चित्तवृत्तियाँ सुख-दुःख और मोह के कारण है। इसलिए उनका निरोध आवश्यक है। योग-दर्शन शरीर, प्राण और मनस् के संयम से यम और नियम के अभ्यास से सम्पूर्ण चित्तवृत्तियों और संस्कारों का निरोध करने का उपदेश देता है।

पतंजलि ने योग को चित्त वृत्ति निरोध कहा है। वृत्तियाँ पाँच प्रकार की होती हैं-

(i) प्रमाण
(ii) विपर्यय
(iii) विकल्प,
(iv) निद्रा
(v) स्मृति।

जिससे यथार्थ ज्ञान उत्पन्न होता है उसे प्रमाण कहते हैं। योग दर्शन में तीन प्रमाण माने गए हैं प्रत्यक्ष अनुमान और शब्द। विपर्यय को मिथ्या ज्ञान या भ्रम कहते हैं। अविद्या जो सभी अनर्थों की जननी होती है, योग दर्शन में सबसे बड़ा विपर्यय माना गया है। विपर्यय पाँच हैं - अविद्या, अस्मिता, राग, द्वेष और अभिनिवेश विकल्प उस शब्द योजना को कहते हैं जिसमें शब्द तो रहते हैं किन्तु उनसे अनुकूल कोई वस्तु नहीं होती। वे वस्तुस्थिति से बिल्कुल भिन्न होते हैं। निन्द्रा उनसे अनुकूल कोई वस्तु नहीं होती। वे वस्तुस्थिति से बिल्कुल भिन्न होते हैं। निन्द्रा उस अवस्था को कहते हैं जिसमें जब व्यक्ति न जगा होता है और न स्वप्न देखना होता है। योग दर्शन मानता है कि इस अवस्था में भी ज्ञान रहता है। यह वृत्ति तमो गुण की प्रधानता से उत्पन्न होती है। स्मृति उसे कहते हैं जिसमें अतीत में प्राप्त अनुभवों की वैसी ही प्रतीति होना जैसे अनुभव में हुआ था। यह अनुभवों से धारण किए गये संस्कार के कारण होता है। इन वृत्तियों के कारण ही जीव बन्धन में पड़ता है और जब इनका पूर्णतः निरोध हो जाता है तब वह स्वतंत्र हो जाता है और मोक्ष प्राप्त करता है।

योग दर्शन में चित्त की वृत्तियों को रोकने के लिए महत्व दिया गया है। वृत्तियों के रोकने से चित्त शुद्ध

होता है और जब तक चित्त शुद्ध नहीं होता जीव को मुक्ति उपलब्ध नहीं होती। इसीलिए योग दर्शन में आठ साधनों का प्रतिपादन किया गया है, जिसके अभ्यास से वृत्तियों का निरोध होता है। इन आठ साधनों को अष्टांग योग, अष्टांगिक मार्ग नामों में से जाना जाता है। आठ साधन हैं-

(i) यम,
(ii) नियम,
(iii) आसन,
(iv) प्राणायाम,
(v) प्रत्याहार,
(vi) धारणा,
(vii) ध्यान,
(viii) समाधि

प्रथम पाँच बहिरंग साधन हैं और शेष तीन अन्तरंग साधन हैं।

(i) यम यम योग का प्रथम अंग है। बाह्य और आभ्यंतर इंद्रियों के संयम की क्रिया को यम कहा जाता है। यम के पाँच अंग होते हैं अहिंसा, सत्य, अस्तेय, ब्रह्मचर्य और अपरिग्रह। किसी जीव को किसी भी प्रकार अर्थात् शरीर, वचन और कर्म से कष्ट न पहुँचाना अहिंसा है। कोई चीज जिस रूप में देखी गई थी, अनुमान की गयी या सुनी गई ठीक उसी प्रकार उसको मन में धारण करना, वचन से व्यक्त करना और उसी के अनुकूल व्यवहार करना सत्य कहा जाता है। झूठ न बोलना सत्य है। दूसरे के धन को धन वाले की इच्छा के बिना ग्रहण न करना अस्तेय है। जनेन्द्रिय को वश में में रखना ब्रह्मचर्य है।

(ii) नियम योग का दूसरा अंग नियम है। नियम का तात्पर्य है सदाचार को आश्रय देना। नियम पाँच प्रकार के हैं शौच, संतोष, तष, स्वाध्याय तथा ईश्वर प्रणिधात। शौच के अंतर्गत बाह्य और आन्तरिक शुद्धि समाष्टि है। उचित प्रयास से जो कुछ भी मिल सके उसी में संतुष्ट रहना संतोष है। सदीं-गर्मी सहने का अभ्यास करना तथा कठिन व्रत का पालन करना तप है। नियमित ढंग से धर्म ग्रन्थों का अध्ययन करना स्वाध्याय है। ईश्वर पर ध्यान करना साथ ही अपने को ईश्वर पर पूर्णतः छोड़ देना ईश्वर प्ररिधान है।

(iii) आसन आसन योग का तीसरा अंग है। आसन का अर्थ है शरीर को विशेष मुद्रा में रखना। चित्त में एकाग्रता तभी आती है जब कि शरीर स्वस्थ हो। रोगी शरीर के द्वारा योग साधना नहीं हो सकती। में अतः शरीर को स्वस्थ रखने के लिए 'आसन' आवश्यक है। -

(iv) प्राणायाम यह योग का चौथा अङ्ग है। इन्द्रियों को मन के वश में करना प्रत्याहार है। जब इन्द्रियाँ स्वेच्छाचारी होती हैं तब वे मन को विभिन्न विषयों की ओर भागती है किन्तु साधक उन्हें विषयों से हटाकर मन को वशीभूत कर देता है। ऐसी स्थिति में रूप, रस, गन्ध, शब्द और स्पर्श से मन प्रभावित नहीं होता है।

(v) प्रत्याहार प्रत्याहार योग का पाँचवाँ अंग है। इसमें व्यक्ति को अल्प और सात्विक आहार की आवश्यकता होती है। इससे व्यक्ति निरोग तथा चित्त को एकाग्रता मिलती है।

(vi) धारणा योग का छठां अंग धारणा है। किसी देश में चित्त को लगाना ही धारणा है, जैसे  नासिका या जिह्वा का अग्रभाग, हृदय, सूर्य आदि। चित्त को वस्तु पर स्थिर किए बिना साधना नहीं हो सकती। अतः धारणा का योग साधना में अत्यधिक महत्व है।

(vii) ध्यान यह योग का सातवाँ अंग है। ध्येय वस्तु का लगातार मनन करना ध्यान है। ऐसा करने से ध्येय वस्तु के स्पष्ट रूप का बोध योगी को हो जाता है।

(viii) समाधि यह योग का आठवाँ अंग है। ध्येय वस्तु के साथ साधक का लीन हो जाना समाधि है। उसे केवल ध्येय वस्तु का ही बोध होता है न कि अपना। साधना के इस स्तर पर ध्याता और ध्येय वस्तु में कोई भिन्नता नहीं रह जाती है। ध्याता के ध्येय वस्तु के रूप को धारण कर लेता है और अपने रूप को भूल जाता है। ध्यान की स्थिति में ऐसा नहीं होता। वहाँ पर ध्यान और ध्येय वस्तु की भिन्नता का बोध ध्याता को रहता है। समाधि का महत्व इसलिए है कि इसमें चित्तवृत्ति का निरोध हो जाता है।

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    अनुक्रम

  1. प्रश्न- भारतीय दर्शन का अर्थ बताइये व भारतीय दर्शन की सामान्य विशेषतायें बताइये।
  2. प्रश्न- भारतीय दर्शन का अर्थ बताइये व भारतीय दर्शन की सामान्य विशेषतायें बताइये।
  3. प्रश्न- भारतीय दर्शन की आध्यात्मिक पृष्ठभूमि क्या है तथा भारत के कुछ प्रमुख दार्शनिक सम्प्रदाय कौन-कौन से हैं? भारतीय दर्शन का अर्थ एवं सामान्य विशेषतायें बताइये।
  4. प्रश्न- भारतीय दर्शन की आध्यात्मिक पृष्ठभूमि क्या है तथा भारत के कुछ प्रमुख दार्शनिक सम्प्रदाय कौन-कौन से हैं? भारतीय दर्शन का अर्थ एवं सामान्य विशेषतायें बताइये।
  5. प्रश्न- क्या भारतीय दर्शन जीवन जगत के प्रति निराशावादी दृष्टिकोण अपनाता है? विवेचना कीजिए।
  6. प्रश्न- क्या भारतीय दर्शन जीवन जगत के प्रति निराशावादी दृष्टिकोण अपनाता है? विवेचना कीजिए।
  7. प्रश्न- भारतीय दर्शन की सामान्य विशेषताओं की व्याख्या कीजिये।
  8. प्रश्न- भारतीय दर्शन की सामान्य विशेषताओं की व्याख्या कीजिये।
  9. प्रश्न- दर्शन के सम्बन्ध में भारतीय तथा पाश्चात्य दृष्टिकोणों की व्याख्या कीजिए।
  10. प्रश्न- दर्शन के सम्बन्ध में भारतीय तथा पाश्चात्य दृष्टिकोणों की व्याख्या कीजिए।
  11. प्रश्न- भारतीय वेद के सामान्य सिद्धान्त बताइए।
  12. प्रश्न- भारतीय वेद के सामान्य सिद्धान्त बताइए।
  13. प्रश्न- भारतीय दर्शन के नास्तिक स्कूलों का परिचय दीजिए।
  14. प्रश्न- भारतीय दर्शन के नास्तिक स्कूलों का परिचय दीजिए।
  15. प्रश्न- आस्तिक दर्शन के प्रमुख स्कूलों का परिचय दीजिए।
  16. प्रश्न- आस्तिक दर्शन के प्रमुख स्कूलों का परिचय दीजिए।
  17. प्रश्न- भारतीय दर्शन के आस्तिक तथा नास्तिक सम्प्रदायों की व्याख्या कीजिये।
  18. प्रश्न- भारतीय दर्शन के आस्तिक तथा नास्तिक सम्प्रदायों की व्याख्या कीजिये।
  19. प्रश्न- चार्वाक दर्शन किसे कहते हैं? चार्वाक दर्शन में प्रमाण पर विचार दीजिए।
  20. प्रश्न- चार्वाक दर्शन किसे कहते हैं? चार्वाक दर्शन में प्रमाण पर विचार दीजिए।
  21. प्रश्न- चार्वाक दर्शन में तत्व सम्बन्धी बातों पर निबन्ध लिखिये।
  22. प्रश्न- चार्वाक दर्शन में तत्व सम्बन्धी बातों पर निबन्ध लिखिये।
  23. प्रश्न- चार्वाक दर्शन के ईश्वर सम्बन्धी विचार दीजिए।
  24. प्रश्न- चार्वाक दर्शन के ईश्वर सम्बन्धी विचार दीजिए।
  25. प्रश्न- चार्वाक दर्शन में प्रमाण विचारों का अर्थ बताइए तथा साधनों का वर्णन कीजिए।
  26. प्रश्न- चार्वाक दर्शन में प्रमाण विचारों का अर्थ बताइए तथा साधनों का वर्णन कीजिए।
  27. प्रश्न- चार्वाक दर्शन का संक्षिप्त मूल्यांकन कीजिये।
  28. प्रश्न- चार्वाक दर्शन का संक्षिप्त मूल्यांकन कीजिये।
  29. प्रश्न- चार्वाक के भौतिक स्वरूप की व्याख्या कीजिए।
  30. प्रश्न- चार्वाक के भौतिक स्वरूप की व्याख्या कीजिए।
  31. प्रश्न- चार्वाक की तत्व मीमांसा का स्वरूप क्या है?
  32. प्रश्न- चार्वाक की तत्व मीमांसा का स्वरूप क्या है?
  33. प्रश्न- चार्वाक दर्शन का आलोचनात्मक विवरण दीजिए।
  34. प्रश्न- चार्वाक दर्शन का आलोचनात्मक विवरण दीजिए।
  35. प्रश्न- ईश्वर के अस्तित्व के लिए प्रमाणों की व्याख्या कीजिए।
  36. प्रश्न- चार्वाक दर्शन के प्रत्यक्ष प्रमाण की विवेचना कीजिए।
  37. प्रश्न- चार्वाक दर्शन के आत्मा सम्बन्धी विचार दीजिए।
  38. प्रश्न- सुख प्राप्ति ही जीवन का अन्तिम उद्देश्य है। बताइये।
  39. प्रश्न- चार्वाक के ज्ञान सिद्धांत की समीक्षात्मक व्याख्या कीजिए।
  40. प्रश्न- "चार्वाक की तत्वमीमांसा उसकी ज्ञान मीमांसा पर आधारित है।" विवेचना कीजिए।
  41. प्रश्न- जैन महावीर के जीवन वृत्त तथा शिक्षाओं का वर्णन कीजिए।
  42. प्रश्न- भारतीय संस्कृति में जैन धर्म के योगदान का वर्णन कीजिए।
  43. प्रश्न- जैन दर्शन में स्याद्वाद किसे कहते हैं?
  44. प्रश्न- जैन दर्शन के सात वाक्य भंगीनय लिखिए।
  45. प्रश्न- सात वाक्यों का आलोचनात्मक दृष्टिकोण से वर्णन कीजिए।
  46. प्रश्न- जैनों के बन्धन तथा मोक्ष सम्बन्धी सिद्धान्त की व्याख्या कीजिए।
  47. प्रश्न- जैन दर्शन के अनुसार द्रव्य का परिचय दीजिये।
  48. प्रश्न- द्रव्य के प्रकार बताइये।
  49. प्रश्न- द्रव्य को आकृति द्वारा स्पष्ट कीजिए।
  50. प्रश्न- जीव अथवा आत्मा किसे कहते हैं?
  51. प्रश्न- अजीव द्रव्य क्या है? व्याख्या कीजिए।
  52. प्रश्न- जैन दर्शन में जीव का स्वरूप क्या है?
  53. प्रश्न- जैन दर्शन के द्रव्य सिद्धान्त की समीक्षात्मक व्याख्या कीजिए।
  54. प्रश्न- जैन धर्म पर संक्षिप्त प्रकाश डालिए।
  55. प्रश्न- जैन धर्म के पतन के कारण स्पष्ट कीजिए।
  56. प्रश्न- जैन धर्म व बौद्ध धर्म में समानताओं और असमानताओं का तुलनात्मक परीक्षण कीजिए।
  57. प्रश्न- जैन धर्म की शिक्षाएँ क्या थीं?
  58. प्रश्न- पुद्गल किसे कहते हैं?
  59. प्रश्न- जैन नीतिशास्त्र और धर्म पर टिप्पणी लिखिए।
  60. प्रश्न- जैन धर्म के पाँच महाव्रत बताइए।
  61. प्रश्न- जैन धर्म के प्रमुख सम्प्रदाय बताइए।
  62. प्रश्न- जैन दर्शन का सामान्य स्वरूप बताइए।
  63. प्रश्न- सांख्य की 'प्रकृति' तथा वेदान्त की 'माया' के बीच सम्बन्ध की व्याख्या कीजिये।
  64. प्रश्न- गौतम बुद्ध के जीवन एवं उपदेशों का वर्णन कीजिए।
  65. प्रश्न- बौद्ध धर्म के उत्थान व पतन के क्या कारण थे? समझाइये।
  66. प्रश्न- भारतीय संस्कृति में बौद्ध धर्म का योगदान बताइये।
  67. प्रश्न- बौद्ध दर्शन से क्या आशय है?
  68. प्रश्न- बौद्ध धर्म के चार आर्य सत्यों की विवेचना कीजिए।
  69. प्रश्न- बुद्ध ने कौन से दुःख के कारणों के चक्र बताए? बौद्ध दर्शन के तृतीय आर्य सत्य की विवेचना कीजिये।
  70. प्रश्न- बौद्ध धर्म पर लेख प्रस्तुत कीजिए।
  71. प्रश्न- बौद्ध दर्शन के चार सम्प्रदाय लिखिए।
  72. प्रश्न- क्षणिकवाद का सिद्धान्त क्या है?
  73. प्रश्न- बौद्ध धर्म के महत्त्वपूर्ण तथ्यों पर प्रकाश डालिए।
  74. प्रश्न- बौद्ध दर्शन के अनुसार निर्वाण प्राप्ति के अष्टांगिक मार्ग की व्याख्या कीजिए।
  75. प्रश्न- बौद्ध दर्शन में निर्वाण की व्याख्या कीजिये।
  76. प्रश्न- बौद्ध संगीतियों का संक्षिप्त वर्णन कीजिए।
  77. प्रश्न- महाजनपदों के नाम लिखिए।
  78. प्रश्न- बौद्ध धर्म के प्रमुख सिद्धान्त क्या हैं?
  79. प्रश्न- भारतीय संस्कृति को बौद्ध धर्म की क्या देन थी?
  80. प्रश्न- क्या बौद्ध दर्शन निराशावादी है?
  81. प्रश्न- सांख्य दर्शन के अनुसार प्रकृति की विशेषताएँ लिखिए।
  82. प्रश्न- सांख्य दर्शन के अनुसार प्रकृति के गुणों की व्याख्या कीजिए।
  83. प्रश्न- सत्, रज और तम गुण किसे कहते हैं?
  84. प्रश्न- प्रकृति के गुणों के क्या परिणाम होते हैं?
  85. प्रश्न- सांख्य दर्शन के अनुसार सत्कार्यवाद की व्याख्या कीजिए।
  86. प्रश्न- सांख्य दर्शन के तत्व सम्बन्धी विचार लिखिए।
  87. प्रश्न- प्रकृति तथा पुरुष का अर्थ तथा सम्बन्ध बताइए।
  88. प्रश्न- ज्ञानेन्द्रियों की व्याख्या कीजिए।
  89. प्रश्न- पुरुष के स्वरूप की व्याख्या कीजिए। पुरुष के अस्तित्व के लिए सांख्य द्वारा दिये गये तर्कों की विवेचना कीजिए।
  90. प्रश्न- सांख्य दर्शन की समीक्षा कीजिए।
  91. प्रश्न- सांख्य ज्ञानमीमांसा की विवेचना कीजिए।
  92. प्रश्न- सांख्य दर्शन के पुरुष की अनेकता की विवेचना कीजिए।
  93. प्रश्न- योग दर्शन से क्या तात्पर्य है? समझाइये।
  94. प्रश्न- पंतजलि ने योग सूत्रों को कितने भागों में बाँटा?
  95. प्रश्न- योग दर्शन की व्याख्या कीजिए।
  96. प्रश्न- योग दर्शन के अभ्यास के अंग कौन-कौन से हैं?
  97. प्रश्न- योग दर्शन में तीन मार्ग कौन से हैं?
  98. प्रश्न- योग के अष्टांग साधन बताइए।
  99. प्रश्न- योगांग किसे कहते हैं?
  100. प्रश्न- योग दर्शन के पाँच नियमों की व्याख्या कीजिए।
  101. प्रश्न- योग' से आप क्या समझते हैं? योग साधना के विभिन्न सोपानों का संक्षिप्त विवेचन कीजिए।
  102. प्रश्न- योग दर्शन में ईश्वर के स्वरूप की विवेचना कीजिए।
  103. प्रश्न- योग दर्शन में ईश्वर के स्वरूप की विवेचना कीजिए तथा उसके अस्तित्व को सिद्ध करने सम्बन्धी प्रमाणों की आलोचनात्मक व्याख्या कीजिए।
  104. प्रश्न- वैराग्य क्या है? इसकी भेदों सहित व्याख्या कीजिए।
  105. प्रश्न- न्याय दर्शन से ईश्वर किन रूपों में कार्य करता है।
  106. प्रश्न- न्याय दर्शन में ईश्वर के अस्तित्व के प्रमाण लिखिए।
  107. प्रश्न- न्याय दर्शन की भूमिका प्रस्तुत कीजिए तथा न्यायशास्त्र का महत्त्व बताइये? तथा न्यायशास्त्र का प्रमाण शास्त्र का वर्णन कीजिए।
  108. प्रश्न- प्रमाण शास्त्र की व्याख्या कीजिए।
  109. प्रश्न- भारतीय तर्कशास्त्र में हेत्वाभास के प्रकार बताइए।
  110. प्रश्न- न्याय दर्शन के अनुसार अनुमान' के स्वरूप और प्रकारो की व्याख्या कीजिये।
  111. प्रश्न- न्याय दर्शन के अनुसार सोलह पदार्थों की संक्षिप्त व्याख्या कीजिए।
  112. प्रश्न- प्रमा को परिभाषित करते हुए प्रमा के स्वरूप पर प्रकाश डालिए।
  113. प्रश्न- प्रमा की परिभाषा दीजिए तथा उसके सामान्य लक्षणों पर प्रकाश डालिए।
  114. प्रश्न- प्रमाण की परिभाषा देते हुए प्रमाण के प्रमुख प्रकारों का विवेचन कीजिए।
  115. प्रश्न- न्याय के आलोक में पदार्थ के विभिन्न प्रकारों का विवेचन कीजिए।
  116. प्रश्न- शब्द-प्रमाण में शब्द को स्वतन्त्र प्रमाण माना गया है विवेचन कीजिए।
  117. प्रश्न- उपमान प्रमाण के स्वरूप का विवेचन करते हुए इसकी परिभाषा दीजिए।
  118. प्रश्न- 'न्याय दर्शन' में 'अनुमान प्रमाण के स्वरूप की व्याख्या कीजिए एवं अनुमान प्रमाण के प्रकारान्तर भेदों का उल्लेख कीजिए।
  119. प्रश्न- अनुमान क्या है? परमार्थानुमान व स्मार्थानुमान को स्पष्ट कीजिए।
  120. प्रश्न- प्रत्यक्ष प्रमाण का स्वरूप क्या है?
  121. प्रश्न- न्यायदर्शन में निर्विकल्प प्रत्यक्ष का स्वरूप समझाइये।
  122. प्रश्न- न्यायदर्शन में उपमान प्रमाण का क्या स्वरूप है? न्याय दर्शन में उपमान प्रमाण का स्वरूप
  123. प्रश्न- चार्वाक दर्शन में अनुमान प्रमाण का खंडन किस प्रकार करता है?
  124. प्रश्न- अनुमान प्रमाण में व्याप्ति की भूमिका समझाइये।
  125. प्रश्न- प्रमा और अप्रमा के भेद को स्पष्ट कीजिए।
  126. प्रश्न- न्याय दर्शन में कितने प्रमाण स्वीकार किए गए हैं? सभी का वर्णन कीजिए।
  127. प्रश्न- समानतन्त्र के रूप में न्याय वैशेषिक की व्याख्या कीजिए।
  128. प्रश्न- वैशेषिक दर्शन के पदार्थों के नाम लिखिये।
  129. प्रश्न- वैशेषिक द्रव्यों की व्याख्या कीजिए।
  130. प्रश्न- वैशेषिक दर्शन में कितने गुण होते हैं?
  131. प्रश्न- कर्म किसे कहते हैं? व्याख्या कीजिए।
  132. प्रश्न- सामान्य की व्याख्या कीजिए।
  133. प्रश्न- विशेष किसे कहते हैं? लिखिए।
  134. प्रश्न- समवाय किसे कहते हैं?
  135. प्रश्न- वैशेषिक दर्शन में अभाव क्या है?
  136. प्रश्न- वैशेषिक दर्शन क्या है? न्याय दर्शन और वैशेषिक दर्शन में आपस में क्या सम्बन्ध है? वैशेषिक दर्शन में सात प्रकार के पदार्थ बताइए।
  137. प्रश्न- व्याप्ति क्या है? व्याप्ति की स्थापना किस प्रकार होती है?
  138. प्रश्न- 'गुण' और 'कर्म' पदार्थों की विवेचना कीजिए।
  139. प्रश्न- वैशेषिक दर्शन की समीक्षा कीजिए।
  140. प्रश्न- न्याय-वैशेषिक दर्शन के स्वरूप पर प्रकाश डालिए?
  141. प्रश्न- न्याय-वैशेषिक दर्शन में अनुमान का क्या स्वरूप है?
  142. प्रश्न- समानतन्त्र के रूप में न्याय वैशेषिक की व्याख्या कीजिए।
  143. प्रश्न- संयोग और समवाय पर टिप्पणी लिखिए।
  144. प्रश्न- मीमांसा से क्या तात्पर्य है इसे भली-भाँति समझाइये।
  145. प्रश्न- पूर्व मीमांसा किसे कहते हैं?
  146. प्रश्न- द्रव्यों की व्याख्या कीजिए।
  147. प्रश्न- मीमांसा दर्शन में ज्ञान के कितने साधन माने गये हैं?
  148. प्रश्न- उपमान किसे कहते हैं?
  149. प्रश्न- अर्थापत्ति किसे कहते हैं?
  150. प्रश्न- अनुपलब्धि या अभाव किसे कहते हैं?
  151. प्रश्न- मीमांसा के तत्व विचार की व्याख्या कीजिए।
  152. प्रश्न- मीमांसकों ने 'आत्मा' का क्या स्वरूप बतलाया है?
  153. प्रश्न- शंकराचार्य ने ब्रह्म के कितने स्वरूपों की व्याख्या की है?
  154. प्रश्न- ब्रह्म और माया क्या है?
  155. प्रश्न- ब्रह्म और जीव क्या हैं?
  156. प्रश्न- माया में कितनी शक्तियों का समावेश है?
  157. प्रश्न- "ब्रह्म सत्य जगत मिथ्या" शंकर के इस कथन से आप कहाँ तक सहमत हैं? शंकर के ब्रह्म और जगत सम्बन्धी विचारों के सन्दर्भ में विवेचना कीजिए।
  158. प्रश्न- अद्वैत दर्शन में जीव के बंधन और मोक्ष पर एक निबन्ध लिखिए।
  159. प्रश्न- प्रभाकर मत में अख्यातिवाद क्या है? और यह किस प्रकार भट्ट मत के विपरीत ख्यातिवाद से भिन्न है? स्पष्ट कीजिए।
  160. प्रश्न- शंकर का अद्वैत वेदान्त क्या है?
  161. प्रश्न- अद्वैत वेदान्त में निर्गुण ब्रह्म और सगुण ब्रह्म में क्या भेद बताया गया है? विवेचना कीजिए।
  162. प्रश्न- शंकर के 'ईश्वर' विचार की व्याख्या कीजिये।
  163. प्रश्न- जीव किसे कहते हैं?
  164. प्रश्न- शंकर के अद्वैतवाद तथा रामानुज के विशिष्ट द्वैतवाद में अन्तर बताइए।
  165. प्रश्न- वेदान्त दर्शन किसे कहते हैं? शंकर के वेदान्त दर्शन की व्याख्या कीजिए।
  166. प्रश्न- क्या विश्व शंकर के अनुसार वास्तविक है? विवेचना कीजिए।
  167. प्रश्न- रामानुज शंकर के मायावाद का किस प्रकार खण्डन करते हैं?
  168. प्रश्न- शंकर की ज्ञान मीमांसा का वर्णन कीजिए।
  169. प्रश्न- शंकर के ईश्वर विचार की व्याख्या कीजिए।
  170. प्रश्न- माया क्या है? माया सिद्धान्त की रामानुज द्वारा दी गई आलोचना का विवरण दीजिए।
  171. प्रश्न- रामानुज के विशिष्टाद्वैत वेदान्त से आप क्या समझते हैं? स्पष्ट कीजिए।
  172. प्रश्न- रामानुज के अनुसार ब्रह्म क्या है? ईश्वर व ब्रह्म में भेद बताइए।
  173. प्रश्न- रामानुज के अनुसार मोक्ष व उनके साधनों का वर्णन कीजिए।
  174. प्रश्न- जीवात्मा के भेदों को स्पष्ट कीजिए।
  175. प्रश्न- रामानुज के अनुसार ज्ञान के साधन क्या हैं?
  176. प्रश्न- रामानुज के 'जीव सम्बन्धी विचार की व्याख्या कीजिये।
  177. प्रश्न- रामानुज के जगत की व्याख्या कीजिए।
  178. प्रश्न- विशिष्ट द्वैत दर्शन की आलोचनात्मक व्याख्या कीजिए।
  179. प्रश्न- चित् व अचित् तत्व क्या हैं?
  180. प्रश्न- बन्धन और मोक्ष क्या है?
  181. प्रश्न- चित्त क्या है?

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